भोजन पकाने का नियम | bhojan pakane ka niyam

 खाना कैसे बनाना चाहिए ?
खाना बनाने का सही नियम क्या है ?




भोजन को पकाते समय सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श न मिले तो वो भोजन कभी मत करना। वह भोजन धीमा जहर है। भोजन को पकाते समय उस भोजन को सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श जरूर होना चाहिए। भोजन को पकाते समय अधिक से अधिक प्राण वायु (ऑक्सीजन) भोजन द्वारा शोषित हो जिससे वह भोजन आपके शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध होगा।

प्रेशर कूकर का भोजन न करें। ज्यादातर प्रेशर कूकर एल्युमिनियम के बने हैं और एल्युमिनियम खाना पकाने, रखने और खाने की दृष्टि से सबसे खराब धातु है। एल्युमिनियम के बर्तन का खाना बार-बार खाने से डायबिटीज, अर्थराइटिस, ब्रोंकाइटिस, टी० बी०, अस्थमा आदि इसी तरह की 48 बीमारियाँ हो सकती हैं। ऐसा वैज्ञानिक लोग कहते हैं।

विज्ञान के अनुसार, प्रेशर कूकर खाने को पकाने के लिये उस पर अतिरिक्त दबाव डालता है। प्रेशर कूकर में भोजन पकता नहीं हैं बल्कि दबाव से टूट जाता है। प्रेशर कूकर में पकाए हुये भोजन में सिर्फ 3% माइक्रो न्यूट्रियन्ट्स बचते हैं। मोलिक्यूल्स टूट जाते हैं, पकते नहीं हैं।

एल्युनिमियम के बर्तन का खाना खाने से शरीर की प्रतिकारक क्षमता कम होती है। सौ, सवा सौ साल पहले से एल्युमिनियम भारत में आया है।

ऐल्युमिनियम भारी तत्व है जो शरीर में इक्ट्ठा होता रहता है, एस्क्रिटा सिस्टम जो जहर को बाहर निकालने का तन्त्र है वो एल्युमिनियम को कभी भी बाहर नहीं निकाल पाता और बाद में दमा, अस्थमा, ट्यूबरक्यूलोसिस जैसी गम्भीर बीमारियों का कारण बनता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान मे एल्युमिनियम वर्जित है। कैंसर तक की बीमारियां प्रेशर कूकर से होती है। किड्नी फेल होने का कारण एल्युमिनियम के बर्तन भी है।

एल्युमिनियम जहाज, मिसाइल यान बनाने के लिए बहुत अच्छी धातु है क्योंकि इसमें दबाव को बर्दाश्त करने की सबसे ज्यादा क्षमता होती है। स्टैन्लैस बनाने के लिए निकिल और क्रोमियम दो केमिकल इस्तेमाल करते हैं जो कि बहुत ही भारी धातुएं होती हैं। चाँदी के बर्तन सबसे अच्छे होते हैं।

एल्युमिनियम के बर्तन टी० बी० होने का सबसे बड़ा कारण है। भारत में सरकारी आंकड़े बताते हैं कि यहाँ सबसे ज्यादा मृत्यु टी० बी० के बीमारी के कारण होती है और सबसे ज्यादा मरीज भारत में टी० बी० की बीमारी के ही हैं।

शरीर की ऐसी व्यवस्था है जिसमें हल्की धातुयें शरीर से बाहर निकल जाती हैं और भारी धातुएं शरीर से बाहर नहीं निकल पाती हैं अर्थात शरीर में ही जमा होती रहती हैं। अतः एल्युमिनियम भारी धातु है जो कि शरीर में जमा होती रहती है। शरीर से बाहर नहीं निकलती है। इसी प्रकार के केमिकल हैं आर्सेनिक, पारा (लेड) आदि ।

रेफ्रिजरेटर की कोई भी चीज न खाना, न पीना क्योंकि रेफ्रिजरेटर में न पवन का स्पर्श होता है और न ही सूर्य का प्रकाश लगता है। रेफ्रिजरेटर ऐसी 12 गैंसों का इस्तेमाल प्रकृति के नियमों के विरूद्ध तापमान कम करने में करता है। जिनको विज्ञान की भाषा में CFC कहते हैं। क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, जिसमें क्लोरीन भी है, फ्लोरीन भी है और कार्बन डाई ऑक्साइड भी है। रसायन शास्त्र के शब्द कोष में क्लोरीन मतलब जहर, फ्लोरीन मतलब अत्यन्त जहर, और कार्बन डाई आक्साइड का मतलब अत्यन्त से भी अत्यन्त जहर। यही कार्य AC भी करता है।




रेफ्रिजरेटर ( फ्रीज ) ये तीनों गैसें लगातार छोड़ता है और ऐसी ही कुल 12 गैंसे छोड़ता है। इसलिए इसमें रखी हुई हर एक वस्तु इन्हीं गैसों के प्रभाव से रहती है। ये गैसें इतनी तीव्र होती हैं कि स्टील के बर्तनों में से भी निकल जाती है। फ्रिज में रखी हुई कोई भी वस्तु यदि आप खा रहे हैं तो आप धीमा जहर खा रहे हैं। रेफ्रिजरेटर का अविष्कार ठण्डे देशों में प्रयोग के लिये हुआ था।

माइक्रोवेव ओवन का कभी भी कुछ न खाना माइक्रोवेव ओवन में जब आप कोई चीज रखते हैं, गरम करने के लिये उस वस्तु का एक ही हिस्सा गरम होता है। कोई भी वस्तु सभी तरफ से बराबर गरम होनी चाहिए। माइक्रोवेव ओवन भी ठण्डे देशों के लिये है। ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए सभी को फ्रिज का इस्तेमाल कम या बन्द करना पड़ेगा।
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